संदेश

सितंबर 8, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

संकटमोचन हनुमानाष्टक

संकटमोचन हनुमानाष्टक मत्तगयन्द छन्द बाल समय रबि लियो तब तीनहुँ लोक भयो अँधियारो। ताहि सों त्रास भयो जग को यह संकट काहु सों जात न टारो॥ देवन आनि करी बिनती तब छाँडि दियो रबि कष्ट निवारो। को नहिं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥1॥ बालि की त्रास कपीस बसे गिरि जात महाप्रभु पंथ निहारो। चौंकि महा मुनि साप दियो तब चाहिय कौन बिचार बिचारो॥ कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु सो तुम दास के सोक निवारो॥2॥ को नहिं. अंगद के सँग लेन गये सिय खोज कपीस यह बैन उचारो। जीवत ना बचिहौ हम सो जु बिना सुधि लाए इहाँ पगु धारो॥ हरि थके तट सिंधु सबै तब लाय सिया-सुधि प्रान उबारो॥3॥ को नहिं.. रावन त्रास दई सिय को सब राक्षसि सों कहि सोक निवारो। ताहि समय हनुमान महाप्रभु जाय महा रजनीचर मारो॥ चाहत सीय असोक सों आगि सु दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो॥4॥ को नहिं.. बान लग्यो उर लछिमन के तब प्रान तजे सुत रावन मारो। लै गृह बैद्य सुषेन समेत तबै गिरि द्रोन सु बीर उपारो॥ आनि सजीवन हाथ दई तब लछिमन के तुम प्रान उबारो॥5॥ को नहिं.. रावन जुद्ध अजान कियो तब नाग की फाँस सबे सिर डारो। श्रीरघुनाथ समेत सबै दल मोह भयो यह संकट भारो॥ आनि खगेस तबै

भगवान श्री रामचन्द्र जी की आरती

चित्र
आरती कीजै रामचन्द्र जी की। हरि-हरि दुष्टदलन सीतापति जी की॥ पहली आरती पुष्पन की माला। काली नाग नाथ लाये गोपाला॥ दूसरी आरती देवकी नन्दन। भक्त उबारन कंस निकन्दन॥ तीसरी आरती त्रिभुवन मोहे। रत्‍‌न सिंहासन सीता रामजी सोहे॥ चौथी आरती चहुं युग पूजा। देव निरंजन स्वामी और न दूजा॥ पांचवीं आरती राम को भावे। रामजी का यश नामदेव जी गावें॥

श्री राम चालीसा

श्री राम स्तुति श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणं । नवकंज-लोचन कंज मुख, कर कंज, पद कंजारुणं ।। कन्दर्प अगणित अमित छवि नवनील-नीरद सुन्दरं । पटपीत मानहु तड़ित रुचि शुचि नौमि जनक सुतावरं ।। भजु दीनबन्धु दिनेश दानव दैत्यवंश-निकन्दनं । रघुनन्द आनन्द कंद कौशलचन्द दशरथ-नन्दन ।। सिर मुकट कुण्डल तिलक चारु उदारु अंग विभूषणं । आजानु-भुज-शर-चाप-धर, संग्राम जित-खरदूषणं ।। इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुन-मन-रंजनं । मम हृदय-कंज निवास कुरु, कामादि खलदल-गंजनं ।। मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सांवरो । करुणा निधान सुजान सील सनेह जानत रावरो ।। एहि भांति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियं हरषी अली । तुलसी भवानिहि पूजि पुनि-पुनि मुदित मन मंदिर चली ।। ।। सोरठा ।। जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि । मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे ।। श्री राम चालीसा श्री रघुवीर भक्त हितकारी । सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।। निशिदिन ध्यान धरै जो कोई । ता सम भक्त और नहिं होई ।। ध्यान धरे शिवजी मन माहीं । ब्रहृ इन्द्र पार नहिं पाहीं ।। दूत तुम्हार वीर हनुमाना । जासु प्रभाव तिहूं पुर जाना ।। तब भुज दण्ड प्रचण्ड क

स्तुति श्री राम

स्तुति श्री राम ॥श्री गणेशाय नमः॥ श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं।नवकंज-लोचन, कंज-मुख, कर-कंज, पद कंजारुणं॥कन्दर्प अगणित अमित छवि, नवनील नीरद सुन्दरं।पट पीत मानहु तड़ित रुचि शुचि नौमि जनक-सुतावरं॥भजु दीनबन्धु दिनेश दानव-दैत्य-वंश-निकन्दनं।रघुनन्द आनन्दकन्द कोशलचन्द दशरथ-नन्दनं॥सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अंग विभूषणं।आजानुभुज शर-चाप-धर, संग्राम-जित-खरदूषणं॥इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-रंजनं।मम हृदय-कंज-निवास कुरु, कामादि खल-दल-गंजनं॥मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर साँवरो।करुणा निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो॥एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली।तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली॥ (सो०) जानि गौरि अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे॥ ॥ सियावर रामचन्द्र की जय ॥