श्री हनुमान चालीसा अर्थ सहित...
श्री हनुमान चालीसा अर्थ सहित... श्री गुरु चरण सरोज रज , निज मन मुकुरु सुधारि। बरनऊं रघुवर बिमल जसु , जो दायकु फल चारि। अर्थ- शरीर गुरु महाराज के चरण कमलों की धूलि से अपने मन रूपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूं , जो चारों फल धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष को देने वाला है। **** बुद्धिहीन तनु जानिके , सुमिरो पवन-कुमार। बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं , हरहु कलेश विकार। अर्थ- हे पवन कुमार! मैं आपको सुमिरन करता हूं। आप तो जानते ही हैं कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है। मुझे शारीरिक बल , सद्बुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दुखों व दोषों का नाश कार दीजिए। **** जय हनुमान ज्ञान गुण सागर , जय कपीस तिहुं लोक उजागर॥ 1 ॥ अर्थ- श्री हनुमान जी! आपकी जय हो। आपका ज्ञान और गुण अथाह है। हे कपीश्वर! आपकी जय हो! तीनों लोकों , स्वर्ग लोक , भूलोक और पाताल लोक में आपकी कीर्ति है। **** राम दूत अतुलित बलधामा , अंजनी पुत्र पवन सुत नामा॥ 2 ॥ अर्थ- हे पवनसुत अंजनी नंदन! आपके समान दूसरा बलवान नहीं है। **** महावीर विक्रम बजरंगी , कुमति निव