पहले साईं के चरणों में, अपना शीश नवाऊँ मैं कैसे शिर्डी साईं आए, सारा हाल सुनाऊँ मैं कौन हैं माता, पिता कौन हैं, यह न किसी ने भी जाना कहाँ जनम साईं ने धारा, प्रश्न पहेली रहा बना कोई कहे अयोध्या के, ये रामचंद्र भगवान है कोई कहे साईं बाबा, पवन पुत्र हनुमान हैं कोई कह्ता मंगलमूर्ति, श्री गजानन हैं साईं कोई कह्ता गोकुल मोहन-देवकी नंदन है साईं शंकर समझ भक्त कई तो, बाबा को भजते रहते कोई कहे अवतार दत्त का, पूजा साईं की करते कुछ भी मानो उनको तुम, पर साईं है सच्चे भगवान बडे दयालु, दीनबंधु, कितनो को दिया जीवनदान कई वर्ष पहले की घटना, तुम्हें सुनाऊँगा मैं बात किसी भाग्यशाली की, शिर्डी में आई थी बारात आया साथ उसी के था, बालक एक बहुत सुंदर आया, आकार वहीं बस गया, पावन शिर्डी किया नगर कई दिनों तक रहा भटकता, भिक्षा माँगी उसने दर-दर और दिखाई ऐसी लीला, जग में जो हो गई अमर जैसे-जैसे उमर बढी, वैसे ही बढती गई शान घर-घर होने लगा नगर में, साईंबाबा का गुणगान दिग दिगंत में लगा नगर में, फिर तो साईं जी का नाम दीन-दुखी की रक्षा करना, यही रहा बाबा का काम बाबा के चरणों में जाकर, जो कहता