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भगवान शिव की पूजा और पूजा विधि

धर्मेन्द्र सिंह चौहान 09457677900 (प्रभु कृपा)

श्री शिव चालीसा

दोहा जय गणेश गिरिजासुवन मंगल मूल सुजान। कहत अयोध्यादास तुम देउ अभय वरदान॥ जय गिरिजापति दीनदयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥ भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नाग फनी के॥ अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाये॥ वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे॥ मैना मातु कि हवे दुलारी। वाम अंग सोहत छवि न्यारी॥ कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥ नंदी गणेश सोहैं तहं कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥ कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि कौ कहि जात न काऊ॥ देवन जबहीं जाय पुकारा। तबहिं दुख प्रभु आप निवारा॥ किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥ तुरत षडानन आप पठायउ। लव निमेष महं मारि गिरायउ॥ आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥ त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। तबहिं कृपा कर लीन बचाई॥ किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥ दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥ वेद माहि महिमा तुम गाई। अकथ अनादि भेद नहीं पाई॥ प्रकटे उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला॥ कीन्ह दया तहं करी सहाई। नीलकंठ तब नाम कहाई

श्री राम चालीसा

श्री रघुवर भक्त हितकारी सुन लीजै प्रभु अरज हमारी निशिदिन ध्यान धरै जो कोई ता सम भक्त और नहिं होई ध्यान धरे शिवजी मन माहीं ब्रह्मा इंद्र पार नहिं पाहीं जय जय जय रघुनाथ कृपाला सदा करो संतन प्रतिपाला दूत तुम्हार वीर हनुमान जासु प्रभाव तिंहू पुर जाना तव भुज दण्ड प्रचण्ड कृपाला रावण मारि सुरन प्रतिपाला तुम अनाथ के नाथ गोसाई दीनन के हो सदा सहाई ब्रह्मादिक तव पार न पावैं सदा ईश तुम्हरो यश गावैं चारिउ वेद भरत हैं साखी तुम भक्तन की लज्जा राखी गुण गावत शारद मन माहीं सुरपति ताको पार न पाहीं नाम तुम्हार लेत जो कोई ता सम धन्य और नहिं होई राम नाम है अपरम्पारा चारिहु वेदन जाहि पुकारा गणपति नाम तुम्हारो लीन्हो तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हो शेष रटत नित नाम तुम्हारा महि को भार शीश पर धारा फूल समान रहत सो भारा पाव न कोउ तुम्हरो पारा भरत नाम तुम्हरो उर धारो तासों कबहुं न रण में हारो नाम शत्रुहन ह्र्दय प्रकाशा सुमिरत होत शत्रु क

श्री हनुमान चालीसा

श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि बरनउं रघुवर विमल जसु, जो दायकु फल चारि बुद्धिहीन तनु जानि कै, सुमिरौं पवन कुमार बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार जय हनुमान ज्ञान गुण सागर जय कपीस तिहुं लोक उजागर रामदूत अतुलित बल धामा अंजनि पुत्र पवनसुत नामा महावीर विक्रम बजरंगी कुमति निवार सुमति के संगी कंचन बरन विराज सुवेसा कानन कुण्डल कुचिंत केसा हाथ वज्र और ध्वजा विराजै कांधे मूंज जनेऊ साजै शंकर सुवन केसरी नंदन तेज प्रताप महा जगवंदन विद्यावान गुणी अति चातुर राम काज करिबे को आतुर प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया राम लखन सीता मन बसिया सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा विकट रुप धरि लंक जरावा भीम रुप धरि असुर संहारे रामचंद्र्जी के काज संवारे लाय संजीवन लखन जियाये श्री रघुवीर हर्षि उर लाये रघुपति कीन्हीं बहुत बडाई तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई सहस बदन तुम्हारो यश गावै अस कहि श्रीपति कंठ लगावै सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा नारद सा

संकटमोचन हनुमानाष्टक चालीसा

मत्तगयन्द छन्द बाल समय रबि भक्षि लियो तब तीनहुँ लोक भयो अँधियारो। ताहि सों त्रास भयो जग को यह संकट काहु सों जात न टारो। देवन आनि करी बिनती तब छाँड़ि दियो रबि कष्ट निवारो। को नहिं जानत है जगमें कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥१॥ बालि की त्रास कपीस बसै जिरि जात महाप्रभु पंथ निहारो। चौंकि महा मुनि साप दियो तब चाहिय कौन विचार विचारो। कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु सो तुम दास के सोक निहारो। को नहिं जानत है जगमें कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥२॥ अंगद के सँग लेन गये सिय खोज कपीस यह वैन उचारो। जीवत ना बचिहौ हम सो जु बिना सुधि लाए इहाँ पगु धारो। हरि थके तट सिंधु सबै तब लाय सिया सुधि प्रान उबारो। को नहिं जानत है जगमें कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥३॥ रावन त्रास दई सिय को सब राक्षसि सों कहि सोक निवारो। ताहि समय हनुमान महाप्रभु जाय महा रजनीचर मारो। चाहत सीय असोक सों आगि सुदै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो। को नहिं जानत है जगमें कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥४॥ बान लग्यो उर लछिमन के तब प्रान तजे सुत रावन मारो। लै गृह वैद्य सुषेन समेत तबै गिरि द्रोन सु वीर उपारो। आनि सजीवन हाथ दई तब लछ

श्री गणेश चालीसा

जय गणपति सद्रगुण सदन, कविवर कृपाल विघ्न हरण मंगल, जय जय गिरिजालाल जय जय जय गणपति गणराजू मंगल भरण करण शुभ काजू जय गजबदन सदन सुखदाता विश्व विनायक बुद्धि विधाता वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन राजत मणि मुक्तन उर माला स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं मोदक भोग सुगंधित फूलं सुंदर पीताम्बर तन साजित चरण पादुका मुनि मन राजित धनि शिवसुवन षडानन भ्राता गौरी ललन विश्व विख्याता ऋद्धि सिद्धि तव चंवर सुधारे मुषक वाहन सोहत द्रारे कहौं जन्म शुभ कथा तुम्हारी अति शुचि पावन मंगलकारी एक समय गिरिराज कुमारी पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा तब पहुंच्यो तुम धरि द्धिज रुपा अतिथि जानि कै गौरि सुखारी बहुविधि सेवा करी तुम्हारी अति प्रसन्न ह्रै तुम वर दीन्हा मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला बिना गर्भ धारण, यहि काला गणनायक गुण ज्ञान निधाना पूजित प्रथम रुप भगव

श्री लक्ष्मी चालीसा

दोहा मातु लक्ष्मी करि कृप, करो ह्र्दय में वास मनोकामना सिद्ध करि, पुरवहु मेरी आस सोरठा यही मोर अरदास, हाथ जोड विनती कंरु सबविधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका सिंधु सुता मैं सुमिरौं तोही ज्ञान बुद्धि विद्या दो मोही तुम समान नहिं कोई उपकारी सब विधि पुरवहु आस हमारी जय जय जगत जननि जगदम्बा सबकी तुम ही हो अवलम्बा तुम ही हो घट घट की वासी विनती यही हमारी खासी जगजननी जय सिंधु कुमारी दीनन की तुम हो हितकारी विनवौं नित्य तुमहिं महारानी कृपा करौ जग जननि भवानी केहि विधि स्तुति करौं तिहारी सुधि लीजै अपराध बिसारी कृपा दृष्टि चितवो मम ओरी जगजननी विनती सुन मोरी ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता संकट हरो हमारी माता क्षीरसिंधु जब विष्णु मथायो चौदह रत्न सिंधु में पायो चौदह रत्न में तुम सुखदासी सेवा कियो प्रभु बनि दासी जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा रुप बदल तहं सेवा कीन्हा स्वंय विष्णु जब नर तनु धारा लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा तब तुम प्रगट जनकपु

श्री श्याम चालीसा

जय हो सुंदर श्याम हमारे, मोर मुकुट मणिमय हो धारे कानन के कुंडल मन मोहे, पीत वस्त्र कटि बंधन सोहे गल में सोहत सुंदर माला, सांवरी सूरत भुजा विशाला तुम हो तीन लोक के स्वामी, घट घट के हो अंतरयामी पदम नाभ विष्णु अवतारी, अखिल भुवन के तुम रखवारी खाटू में प्रभु आप बिराजे, दर्शन करत सकल दुख भाजे रजत सिंहासन आय सोहते, ऊपर कलशा स्वर्ण मोहते अगम अनूप अच्युत जगदीशा, माधव सुर नर सुरपति ईशा बाज नौबत शंख नगारे, घंटा झालर अति झनकारे माखन मिश्री भोग लगावे, नित्य पुजारी चंवर ढुलावे जय जय कार होत सब भारी, दुख बिसरत सारे नर नारी जो कोई तुमको मन से ध्याता, मनवाछिंत फल वो नर पाता जन मन गण अधिनायक तुम हो, मधु मय अमृत वाणी तुम हो विद्या के भंडार तुम्ही हो, सब ग्रथंन के सार तुम्ही हो आदि और अनादि तुम हो, कविजन की कविता में तुम हो नील गगन की ज्योति तुम हो, सूरत चांद सितारे तुम हो तुम हो एक अरु नाम अपारा, कण कण में तुमरा विस्तारा भक्तों के भगवान तुम्हीं हो,

श्री साईं चालीसा

पहले साईं के चरणों में, अपना शीश नवाऊँ मैं कैसे शिर्डी साईं आए, सारा हाल सुनाऊँ मैं कौन हैं माता, पिता कौन हैं, यह न किसी ने भी जाना कहाँ जनम साईं ने धारा, प्रश्न पहेली रहा बना कोई कहे अयोध्या के, ये रामचंद्र भगवान है कोई कहे साईं बाबा, पवन पुत्र हनुमान हैं कोई कह्ता मंगलमूर्ति, श्री गजानन हैं साईं कोई कह्ता गोकुल मोहन-देवकी नंदन है साईं शंकर समझ भक्त कई तो, बाबा को भजते रहते कोई कहे अवतार दत्त का, पूजा साईं की करते कुछ भी मानो उनको तुम, पर साईं है सच्चे भगवान बडे‌ दयालु, दीनबंधु, कितनो को दिया जीवनदान कई वर्ष पहले की घटना, तुम्हें सुनाऊँगा मैं बात किसी भाग्यशाली की, शिर्डी में आई थी बारात आया साथ उसी के था, बालक एक बहुत सुंदर आया, आकार वहीं बस गया, पावन शिर्डी किया नगर कई दिनों तक रहा भटकता, भिक्षा माँगी उसने दर-दर और दिखाई ऐसी लीला, जग में जो हो गई अमर जैसे-जैसे उमर बढी, वैसे ही बढती गई शान घर-घर होने लगा नगर में, साईंबाबा का गुणगान दिग दिगंत में लगा नगर में, फिर तो साईं जी का नाम दीन-दुखी की रक्षा करना, यही रहा बाबा का काम बाबा के चरणों में जाकर, जो कहता

श्री विन्ध्येश्‍वरी चालीसा

दोहा नमो नमो विन्ध्येश्‍वरी नमो नमो जगदम्ब। सन्तजनों के काज में माँ करती नहीं विलम्ब॥ जय जय जय विन्ध्याचल रानी। आदि शक्ति जग विदित भवानी॥ सिंहवाहिनी जै जग माता। जय जय जय त्रिभुवन सुखदाता॥ कष्ट निवारिनी जय जग देवी। जय जय जय जय असुरासुर सेवी॥ महिमा अमित अपार तुम्हारी। शेष सहस मुख वर्णत हारी॥ दीनन के दुःख हरत भवानी। नहिं देख्यो तुम सम कोई दानी॥ सब कर मनसा पुरवत माता। महिमा अमित जगत विख्याता॥ जो जन ध्यान तुम्हारो लावै। सो तुरतहि वांछित फल पावै॥ तू ही वैष्णवी तू ही रुद्राणी। तू ही शारदा अरु ब्रह्माणी॥ रमा राधिका शामा काली। तू ही मात सन्तन प्रतिपाली॥ उमा माधवी चण्डी ज्वाला। बेगि मोहि पर होहु दयाला॥ तू ही हिंगलाज महारानी। तू ही शीतला अरु विज्ञानी॥ दुर्गा दुर्ग विनाशिनी माता। तू ही लक्ष्मी जग सुखदाता॥ तू ही जान्हवी अरु उत्रानी। हेमावती अम्बे निर्वानी॥ अष्टभुजी वाराहिनी देवी। करत विष्णु शिव जाकर सेवी॥ चोंसट्ठी देवी कल्यानी। गौरी मंगला सब गुण खानी॥ पाटन मुम्बा दन्त कुमारी। भद्रकाली सुन विनय हमारी॥ वज्रधारिणी शोक नाशिनी। आयु रक्षिणी विन्ध्यवासिनी॥ जया

श्री भैरव चालीसा

दोहा श्री गणपति गुरु गौरि पद प्रेम सहित धरि माथ। चालीसा वन्दन करौं श्री शिव भैरवनाथ॥ श्री भैरव संकट हरण मंगल करण कृपाल। श्याम वरण विकराल वपु लोचन लाल विशाल॥ जय जय श्री काली के लाला। जयति जयति काशी- कुतवाला॥ जयति बटुक- भैरव भय हारी। जयति काल- भैरव बलकारी॥ जयति नाथ- भैरव विख्याता। जयति सर्व- भैरव सुखदाता॥ भैरव रूप कियो शिव धारण। भव के भार उतारण कारण॥ भैरव रव सुनि हवै भय दूरी। सब विधि होय कामना पूरी॥ शेष महेश आदि गुण गायो। काशी- कोतवाल कहलायो॥ जटा जूट शिर चंद्र विराजत। बाला मुकुट बिजायठ साजत॥ कटि करधनी घूँघरू बाजत। दर्शन करत सकल भय भाजत॥ जीवन दान दास को दीन्ह्यो। कीन्ह्यो कृपा नाथ तब चीन्ह्यो॥ वसि रसना बनि सारद- काली। दीन्ह्यो वर राख्यो मम लाली॥ धन्य धन्य भैरव भय भंजन। जय मनरंजन खल दल भंजन॥ कर त्रिशूल डमरू शुचि कोड़ा। कृपा कटाक्ष सुयश नहिं थोडा॥ जो भैरव निर्भय गुण गावत। अष्टसिद्धि नव निधि फल पावत॥ रूप विशाल कठिन दुख मोचन। क्रोध कराल लाल दुहुँ लोचन॥ अगणित भूत प्रेत संग डोलत। बम बम बम शिव बम बम बोलत॥ रुद्रकाय काली के लाला। महा कालहू के हो काला॥ ब

श्री शनि चालीसा

दोहा जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल जय जय श्री शानिदेव प्रभु, सुनहु विनय महराज करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज जयति जयति शानिदेव दयाल करत सदा भक्तन प्रतिपाला चारि भुज, तनु श्याम विराजै माथे रतन मुकुट छवि छाजै परम विशाल मनोहर भाला टेढी दृष्टि भृकुटि विकराला कुण्डल श्रवण चमाचम चमके हिये माल मुक्तन मणि दमके कर में गदा त्रिशुल कुठारा पल बिच करैं अरिहिं संहारा पिंगल, कृष्णो, छाया, नंदन यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन सौरी, मंद, शानि, दश नामा भानु पुत्र पूजहिं सब कामा जा पर प्रभु प्रसन्न ह्रै जाही रंकहुं राव करैं क्षण माहीं पर्वतहू तृण होई निहारत तृण हू को पर्वत करि डारत राज मिलत बन रामहिं दीन्हो कैकेइहुं की मति हरि लीन्हो बनहूं में मृग कपट दिखाई मातु जानकी गई चुराई लखनहिं शाक्ति विकल करि डारा मचिगा दल में हाहाकारा रावण की गाति मति बौराई रामचंद्र सो बैर बढाई दियो कीट करि कंचन लंका बजि बजरंग बीर की डंका नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा चित

श्री दुर्गा चालीसा

नमो नमो दुर्गे सुख करनी नमो नमो अम्बे दुःख हरनी निराकार है ज्योति तुम्हारी तिहुं लोक फैली उजियारी शशि ललाट मुख महा विशाला नेत्र लाल और भृकुटी विकराला रुप मातु को अधिक सुहावे दरश करत जन अति सुख पावे तुम संसार शक्ति लय कीना पालन हेतु अन्न धन दीना अन्न्पूर्णा हुई जग पाला तुम ही आदि सुंदरी बाला प्रलयकाल सब नाशन हारी तुम गौरी शिवशंकर प्यारी शिव योगी तुम्हारे गुण गावें ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें रुप सरस्वती को तुम धारा दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा धरा रुप नरसिंह को अम्बा प्रकट भई फाडकर खम्बा रक्षा करि प्रह्राद बचायो हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो लक्ष्मी रुप धरा जग माहीं श्री नारायण अंग समाही क्षीरसिंधु में करत विलासा दयासिंधु दीजै मन आसा हिंगलाज में तुम्हीं भवानी महिमा अमित न जात बखानी मातंगी अरु धूमावति माता भुवनेश्वारि बगला सुखदाता श्री भैरव तारा जग तारिणि छिन्न भाल भव दुःख निवारिणि केहरि वाहन सोह भवानी लांगु

हनुमान पूजा

हनुमान पूजा महात्मयः श्री हनुमान देवी-देवताओं में चिरंजीवी हैं। शीघ्र प्रसन्न होने वाले पवन पुत्र बल व बुद्धि के अनूठे संगम और हर तरह के संकट को हरने वाले हैं। श्री हनुमान की आराधना सर्व सुख देने वाली है हनुमान का एक अर्थ है निरहंकारी या अभिमानरहित। हनु का मतलब हनन करना और मान का मतलब अहंकार। अर्थात जिसने अपने अहंकार का हनन कर लिया हो। यह सभी को पता है कि हनुमानजी को कोई अभिमान नहीं था। शास्त्रों में उल्लेख है कि हनुमान शिव के रुद्रावतार हैं। इनका जन्म वायुदेव के अंश और अंजनी के गर्भ से हुआ, जो केसरी नामक वानर की पत्नी थी। पुत्र न होने से वह दु:खी थीं। मतंग ऋषि के कहने पर अंजनी ने बारह वर्ष तक कठोर तपस्या की, जिसके फलस्वरूप हनुमान का जन्म हुआ। हनुमान साधना से ग्रहों का अशुभत्व पूर्ण रूप से शांत हो जाता है। हनुमान जी और सूर्यदेव एक दूसरे के स्वरूप हैं, इनकी परस्पर मैत्री अति प्रबल मानी गई है। इसलिए हनुमान साधना करने वाले साधकों में सूर्य तत्व अर्थात आत्मविश्वास, ओज, तेजस्विता आदि विशेष रूप से आ जाते हैं। यह तेज ही साधकों को सामान्य व्यक्तियों से अलग करता है। हनुमान जी की सा

रामभक्त हनुमान का अनोखा संग्रहालय

हनुमान भक्तों के लिए बजरंग का विश्व में पहला और अनोखा दुर्लभ संग्रहालय लखनऊ में स्थापित किया गया है। रामभक्त से जुड़ी चीजों के अनूठे संग्रह के लिए इसका नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया गया है। यह अनोखा काम कर दिखाया है हनुमान भक्त सुनील गोम्बर ने। सुनील गोम्बर ने इस संग्रहालय के लिए देश-विदेश से पिछले कई सालों से हनुमानजी से जुड़ी अनेक चीजें संग्रह‍ित की हैं। इंदिरानगर स्थित अपने निवास बजरंग निकुंज के प्रथम तल में सुनील गोम्बर ने एक बड़े हॉल में इस संग्रहालय में हनुमानजी के जुड़ी दुर्लभ वस्तुएँ संग्रह‍ित की हैं। इस संग्रहालय में प्रभु श्रीराम के 48 चिह्नों द्वारा अंकित चरण पादुकाओं के दर्शन मिलेंगे। यह चाँदी में कारीगरी के द्वारा तैयार कराए गए हैं। भगवान राम द्वारा उच्चारित किए गए हनुमानजी के 1000 विभिन्न नाम भी यहाँ पढ़ने को मिल जाएँगे। ये हनुमान सहस्रनाम स्तोत्र से लिए गए हैं तथा संस्कृत से इनका हिन्दी में अनुवाद किया गया है। संग्रहालय की दीवार में संकटमोचन दिव्य लोक की स्थापना की गई है। इस दिव्यलोक में हनुमान परिवार की दिव्य झाँकी को दर्शाया गया है। हनुमानजी संकट

हनुमान साधना के नियम

हनुमान जी को प्रसन्न करना बहुत सरल है। राह चलते उनका नाम स्मरण करने मात्र से ही सारे संकट दूर हो जाते हैं। जो साधक विधिपूर्वक साधना से हनुमान जी की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं उनके लिए प्रस्तुत हैं कुछ उपयोगी नियम ... वर्तमान युग में हनुमान साधना तुरंत फल देती है। इसी कारण ये जन-जन के देव माने जाते हैं। इनकी पूजा-अर्चना अति सरल है, इनके मंदिर जगह-जगह स्थित हैं अतः भक्तों को पहुंचने में कठिनाई भी नहीं आती है। मानव जीवन का सबसे बड़ा दुख भय'' है और जो साधक श्री हनुमान जी का नाम स्मरण कर लेता है वह भय से मुक्ति प्राप्त कर लेता है। हनुमान साधना के कुछ नियम यहां उद्धृत हैं। जिनका पालन करना अति आवश्यक है : हनुमान साधना में शुद्धता एवं पवित्रता अनिवार्य है। प्रसाद शुद्ध घी का बना होना चाहिए। हनुमान जी को तिल के तेल में मिल हुए सिंदूर का लेपन करना चाहिए। हनुमान जी को केसर के साथ घिसा लाल चंदन लगाना चाहिए। पुष्पों में लाल, पीले बड़े फूल अर्पित करने चाहिए। कमल, गेंदे, सूर्यमुखी के फूल अर्पित करने पर हनुमान जी प्रसन्न होते हैं। नैवेद्य में प्रातः पूजन में गुड़, ना