रामचरितमानस के मन्त्र
गोस्वामी तुलसीदासजी के द्वारा प्रकट किये गये रामचरितमानस के मन्त्र
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विभिन्न कष्ट निवारण मन्त्र

ईश्वर दर्शन के लिए
नील सरोरुह नील मनि नील नीलधर श्याम । लाजहि तन शोभा निरखि कोटि कोटि शत काम ॥
आराम मिलने के लिए
रामचरन द्रढ प्रीति कर बालि कीन्ह तन त्याग । सुमन माल जिमि कंठ से गिरत न जानै नाग ॥

रक्षा मंत्र
मामभिरक्षय रघुकुल नायक । घृतवर चाप रुचिरकर सायक ॥
विपत्तिनाश के लिये
राजिवनयन धरें धनु सायक । भगत विपति भंजन सुखदायक ॥

संकटनाश के लिये
जो प्रभु दीनदयाल कहावा । आरति हरन वेद जसु गावा॥जपहि नामु जनु आरति भारी। मिटहि कुसंकट होहिं सुखारी॥दीन दयाल विरिदु सम्भारी। हरहु नाथ मम संकट भारी॥

कठिन कलेश नाश के लिये
हरन कठिन कलि कलुष कलेसू। महामोह निसि दलन दिनेसू॥

विघ्न शांति के लिये
सकल विघ्न व्यापहिं नहि तेही।राम सुकृपा बिलोकहिं जेही॥

दुख नाश के लिये
जब ते राम ब्यहि घर आये।नित नव मंगल मोद बधाये॥

चिन्ता की समाप्ति के लिये
जय रघुवंश बनज बन भानू। गहन दनुज कुल दहन कृशानू॥दैहिक दैविक भौतिक तापा।राम राज काहूहिं नहि ब्यापा॥

शत्रुनाश के लिये
बयरु न कर काहू सन कोही।राम प्रताप विषमता खोई॥
शत्रु के सामने जाने के लिये
कर सारंग तूण कटि माथा।अरिदल दलन चले रघुनाथा॥
विवाह के लिये
तब जनक पाइ वशिष्ठ आयुस ब्याह साजि संवारि कें।मांडवी श्रुतकीरति उरमिला,कुँअरि लई हंकारि कें॥
शिक्षा की सफ़लता के लिये
जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी।कबि उर अजिर बचावहिं बानी॥मोरि सुधारहिं सो सब भांती।जासु कृपा नहि कृपा अघाती॥

विद्या प्राप्ति के लिये
गुरु गृह पढन गये रघुराई।अलप काल विद्या सब आई॥

आकर्षण के लिये
जेहि कर जेहि पर सत्य सनेहू।सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू॥

यात्रा सफ़ल होने के लिये
प्रबिसि नगर कीजै सब काजा।ह्रदय राखि कौसलपुर राजा॥
प्रेम बढाने के लिये
सब नर करहिं परस्पत प्रीती।चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥

वार्तालाप में सफ़लता के लिये
तेहि अवसर सुनि सिवधनुभंगा।आये भृगुकुल कमल पतंगा॥
सभी तरह की आपत्ति के विनाश के लिये
बंदउं पवन कुमार,खल बन पावक ग्यान घन।जासु ह्रदय आगार,बसहिं राम सरचाप धर॥

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